राजनारायण बोहरे और मित्रो की कहानियाँ

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I m a Hindi story writer. Who started writing in eighties.I write literary stories, mostly fiction and short stories. I am not interested in any political or issue based topics and I do not write on such topics. मैं आठवें दशक में अपना लेखन आरंभ करने वाला हिन्दी कहानी लेखक हूं। किन्ही अजीबोगरीब प्रयोगों और आन्दोलनों में मैं दिलचस्पी नहीं रखता और उन्हे आदर्श व उचित नहीं मानता। लोकप्रिय किन्तु साहित्यिक लेखन मेरा उद्देश्य है।

शनिवार, 17 जनवरी 2015

फैसला














कहानी-
राजनारायण बोहरे

                                                                                                                फैसला


                वे मंदिर के प्रांगण में प्रवेष कर रहे थे तभी संजू दिखा उन्हे। माता के दरबार में हाजिरी लगवाके लौट रहा था
                उन्हे ताज्जुब हुआ... ये तो रोज शाम सात बजे आता है दर्षन करने, आज इस समय...!
                लगता है आज पेषी है इसकी...., हां इसमी मां कह रही थी
                स्ंजू ने झुककर उनके पांव छुये तो आंखों के पलवा भर आये संजू देख ले अपने बाप को इस तरह कमजोर होते हुए,सो उसके सिर परा हाथ रखकर जल्दी से वे मंदिर के छोटे द्वार में झुककर भीतर प्रवष कर गये
                फिर कनखियों से देखा उसे, वह सदा की तरह मुस्कराता हुआ कोई गीत गुनगुनाता चला जा रहा था। उन्हे धीरज बंधा, लड़का चिन्तित नहीं है मुदमे को लेकर ज्यादा
                स्ंजू पर बहुत दया आती है उन्हे। ...बेचारा सीधा सादा पढ़ाकू लड़का कहां फंस गया फालतू के चक्करों में!
                माता को योनिमुद्रा बना कर प्रणाम किया और उनके दरबार के बाहर के बरामदे में अपने बेठने की जगह पहुंचकर संग लाया आसन बिछाया और लाल रंग की अपनी लुंगी संभालते हुए पालती लगा कर बेठ गये
                झोले मं से एक और आसनी निकाली उसे सामने बिछाया, उस पर कमलगटा और हरिद्रा  की माला निकाल कर रखी।मालाओं को प्रणाम किया, एक मिनट देवी का ध्यान किया, फिर  अभ्यस्त ढंग से कमल गटा की माला उठा कर बिपत्ति और घोर संकट से विमुकत करा देनेेवाले पांचों हं कारनामधारीयों का मंत्र बुदबुदानेलगे- हरं हरिं हरिष्चन्द्रम, हनुमन्तम हलायुधम; पंचकः हं जपे नित्यं घोर संकट नाषनम्
 इसके बाद हल्दी की बनी माला सेगं गणपतये नमःका जापषुरू कर दिया। एक मालाबं बटुकाय नमःकी करके देवी का जाप करेंगे। आज कितना जप करेंगे, यह अभीतय नहीं किया है, जितना हो जाय कर लेंगे। सुबह सेसांझ तक जप ही जप चलता रहता है उनका ।दिन में आठ-दस घण्टे पूजा-पाठ करते हैं, अकेली देवी नहीं, महादेवजी, रामचन्द्रजी का भी आराधना करते हैं वे एक पंडित कहे अनुसारदीनदयाल विरिदु संभारी, हरउ नाम मम संकल भारीका संपुट लगा कर सुन्दर काण्ड का पाठ भी करते हैं पहले कोई पूजा-पाठ नहीं करते थे वे, मन में भव ही नहीं रहता था उनदिनां साधना या भक्ति का। कुछ तो युवावास्था में हरेक युवा के मन में जानेवाला आंषिक नास्तिकता का भाव और कुछ संतोषी सदा सुखी वाली भावना के कारण इस तरफ कभी ध्यान नहीं दिया उन्होने। वो तो संजू के लिए ये सब जतन कर रहे है, जतन ही नहीं मन में अगाध विष्वास सा हो चला है कि इन पूजा पाठों से बचा लेंगे वे अदालत से संजू को। वे भी इस उम्रमें संजू  की तरह मस्तरहा करते थे। बल्कि संजू से भी छोटी उमर से...
जब से होष संभाला एक कल्पनाषील प्राणी औरभावुक व्यक्ति के रूप् में खुदको पाया उन्होनेे, इसी कल्पनाषीलता का ही तो परिणाम था कि अक्षर ज्ञान हुआ साहित्य लिखने लगे वे किस्से-कहानियों और कविताआगं में खूब मन रमताउनका इधर मन जवान हुआ और उधर कविताऐं कलम सधी तो ऐसी ऐसी कवितायें लिख डाली उन्होने कि अगर उन्हे मंच पर तरन्नुम से कविता प्ढ़ने वाले कवि सुन लें तो मुंहमागे दाम देकर खरीद लें उनसेहां उनके मन मेंहर से हर इतनी ही कल्पना थाी कि उनकी कवताएं कोई खरीद लेगा उन्हे तो कभी मौकान मिलना नहीं है छपने का ना ही किसी मंच से प्ढ़ने का लेकिन छोटा सा कस्बा और उस पर कवि इतने कि कंकर फेंक दो तो कवि पर जाकर गिरे, सो उनकी कविताओं की किसी ने तारी नहीं की कभी। सब जल कुक्कड़ साले, अपनी तुकबंदी उम्दा कविता दिखती और उनकी बेहतरीन कविता को यूं सुन कर रह जाते मानों मर्सिया सुन रहे हों   वे अपने मन की बात बच्चों से कहते, बच्चों यानी कि छात्रासे से ,हां ग्यारहवों दर्जा पास करते ही नौकरी  मिली सो पूरे तन मन से  भावी पीड़ी को षिक्षित करते रहते थे। एक ग्रामीण स्कूल में मास्टर थे वे ।े
ब्याह हुआ और पत्नी ऐसी सुंदरा मिलीं कि अप्सरा भ्ीा पानी भरे उसकेआगे, लेकिन समस्या यही कि सुदर खूब थी वह और गमान रत्ती भर भी नहीं। एक कवि को भला यहां कहां से सुहाता कि सौंदर्य को अपना गुमान ही हो। उस पर साक्षरता में ऐसी कि लिख लोड़ा और  पत्थर   उसने कभी यह जानने का यत्न नहीं किया कि मेरे पति दिनरात क्या कागद गूदते रहते है। उसे अपनी गृहस्थी भली और घर के काम काज बनाव श्रृंगार आता उसे दुनिया भर की बातें जब पति से अकेले में मिलती तो उसे समझ ही पड़ता कि क्या बोले, और वे उसकी सुंदरता में कुछ बोलते भी तो वो ऐसे धूनमथान हो जाती कि वे अपने साहित्य संसार में ही कुलटइयां खाते रहते पत्नी की संदरता की तारीफ की कभी उसके मन में घर के अलावा किसी और काम के प्रति लगाव जगाया सो दोनों की दो दुनिया बन गईं वे सिर्फ उतने काम के जिम्मदार रहे जो पत्न बता देती और उसे जैसे तैसे सुलटा करक वे फारिग। स्कूल में तो रहता ही कितना काम है, वहां से लौटते तो सीधे किसी कवि मित्र के घर जाकर जम जाते कुल मिला कर भले ढंग से जिंदगी चल रही थी जिसमें ज्यादा महत्वाकांक्षायें थी ज्यादा कमाने की हवस। हवस तो औरत को भोगने की भी थी उन्हे  सो पहलौटी की लड़की हुई संजना और उसकी पीढ का लड़का हुआ संजू बस मनु स्मृति का पूरा पालन किया उन्होने। हां घर से बाहर बहुतेरी कविता प्रेयसी थीं उनकी, जो उनसे मनुहार करके कविता सुनतीं और जब वे नारी देह का उन्मादक वर्णन करत तो वे समती कि उन्हे ही लक्ष्य करके कविता लिखी गई है, और बहुत कुछ था भी ऐसा सोश्रोंता वक्ता ज्ञान निधि कथा राम की गूढ़केी स्थिति हो जाती दोनां के बीच
स्ंजना बचपन से एंसी चंचल ऐसी षरारती कि मन माह लती सो जल्दी ही हिये का हार बन गई वह अपने बाप की। वे दिनभर उसे लादे फिरते। जबकि बेटा केंऊ केंऊ करता रिरयाता फिरता, वे ध्यान ही देते दरअसल दोनों का स्वभाव विपरीत था अपनी जोनी सेे, संजना मर्दाना हरकतं करती और संजू जनाना बचपन मेंही फ्राक पहनना ज्यादा अच्छा लगता उसे जबकि संजना हमेषा लड़कों के कपड़े पहनती क्रिकेट, बॉलीबाल, हाूकी और फुटबाल जैस लड़कोंके खेल खेलतीथी वह, और वे उसे वकअपकराते।उनकीषह पाकर बेटीदबंद हाती जारीथी, जबकि पत्नी उसे डांटती थी हररोज- संजना ठीक से बेठो, कपड़ ठीक करो अपने, ये हर पल दांत काहे को दिखाती हो, तनिक दूर से बात किया करो सबसे
वो उन्हे बताती वे उसे निस्फिकर कर देते, ‘ तुम कान मत दिया करो उनकी  कही पर। वे तो ऐसी ही हैं जा मन में आये वही किया करो
...मन्दिर में आज साझ संगत होगी, एक साजिन्दा तमाम साज पांछने लगा है वे चौंक अरे हाथ की अंगुली झरूक गई हैं, जप बन्द हैं और वे जाने कहां खाये बैठे हे। फिर खुद को दिलाषा दिया, चलो अभी तो बारह बजे हैं ज्यादा समय नहीं हुआ
उधर गोमुखी में हाथ की अंगुली गति पकड़ती हैं और इधर मंह में जुबान लेकिन मन पर किसका वष है? वहतो भटक कर घर की उन्ही परेषानियो पर जा पहुंचता हैं जिनसे दो चार हो रहे हैं वे आजकल
...संजना को उन दिनों ब्यूटी पार्लर को कोर्ष करने काषौक चर्राया था सो सुबह उठकर वह वहा चली जाती वह बी करचुकीथी, जबकि बी एस सी फर्स्ट इयर में प्ढ़ रहा संजू उन दिनों अपने सुखद भविष्य के सपनों मे डूबता उतराता दिन भर कितावो से भिड़ा रहता था। सारा कमरा अस्त व्यस्त रहता उसका और वह  बिना नहाये धाये सदैव कुछ कुछ रटाता रहता संजना से एक अजब सी दूरी बन गई थी उसकी जाने क्या बात थी कि भाई बहन में कर्तई नही पटती थी। वे स्कूल से लौटते और संजू को कमरे में बंद पाते तो नाराज होते, अपनी आंखे खराब क्या रहे लड़के ! दिन भर कमरे में बंद पड़ा रहता है, चल उठ तनिक यार दोस्तों से मिल ले, गली में टहल थेाड़ी देर
उनके डरसे वोसहमा सा उठता आर नामचारके लिए घर से बाहर निकल जाता फिर पता नहीं कब चुपके से आता और अपने कमरे में घुस जाता , वे देख कर भी अनदेखा करदेते-ये लड़का अपनी सेहत खराब कर लेगा ऐसे, पता नहीं कैसा घर घुस्सा है, कोई यार दोस्त किसी से जान पहचान, हर जगह संकोच करता है, कैसे जीवन बिताये गा अपना
...और तभी वो हादसा हो गया था, रजिस्टर खरीदने चौराहे पर गये संजू ने बदहबास हो कर बताया था, ‘‘ पाप्पा...पापा  वो संजना को उठा ले गये कुछ लोग !’
वे चौंके , ‘ क्या बोल रहा है, संजना... अपनी संजना
हां पापा, वो ब्यूटी पार्लर सेंटर से लौट रही थी कि रास्ते में चिन्टू उठा ले गया उसे।
कौन चिन्टू ...?’उनका स्वर टूट रहा था
वो गप्पे पहलवान का लड़का
उसकी ये मजाल! प्र क्या हुआ, बता तो  तनिक ढंग से चिन् की कैसे पड़ी ये हिम्मत। ...संजना क्या जानती थी उसे
पता नहीं , कोई कहता है कि वो खुद हंस के उसकी कार में बैठ गई , तो कोई कहता है कि कनपटी पर पिस्तौल रखदीथी चिन्ट ने  संजू को इतना बोलने मं ही पसीना गया था। पसीना तो उन्हे भी गया एकाएक,...घबराहट भी बढ़ी सोचा, चलो बाजार चल कर पता करते हैं कि कैसे हुआ ये हादसा ....मन कचया गया, किससे पूछेंगे कि मेरी बेटी को उठाते तुमने देखा क्या भाई !...उल्टा हंसेंगे सब के सब सहसा  घबराहट बढ़ गई, इस लड़की ने तो नाक हरी कटादी अब किस मुंह से बाहर निकलूंगा थू थू करेंगे सब च्च च्च च्च अरी नामुराद तूने क्या किया ये






वे टूट गए यकायक भीतर से, और बिस्तर पर गिर पड़े। आंखों के आगे अंधेरा था और मन के आगे गहन अवसाद बरसों की कमई इज्जत और अकड़ मिटा दी इस लड़की ने..., मां सच कहती  थी इसकी कि लड़की है ता लड़कियो की तरह रहे।  ... क्या बचा अब जिन्द में पल पल अवसाद बढ़ रहा था उनका और लग रहा था कि बेइज्जत होने से बेहतर है कि रेल के आगे कूद कर जान दे दें, जहर खा कर मर जायें चलें टाउन हाल के ऊपरीषिख्र से कूद कर या सतखंडा महल के आखिरी कंगूरे से कूद कर जिन्दगानपी खत्म कर दें जियंगे किसी के ताने और कटाक्ष सुनने को मिलेंगे
 पत्नी ने  हठात प्रवेष किया उनके कमरे मंे, ‘ तुम कैसे मर्द आदमी हो, घर में ाघुस के औरतन की नपांई रोय रहे हो, अरे कैसा बज्जुर जिया है आपका  अपनी बेटी को लेगया वो गाुण्डा और हम उसके खिलाफ पुलिस में रिपोट लिखाने में भी शरम कर रहे है। चेत जाओ, अभी समय है, उन्हो ौर जाकर थाने मं रपट लिखवाओ, हो सकता है कि अभी कस्बे में ही कही छपा रखा हो, जितनी देर करोगे उतनी दूर चली जायेगी अपनी इज्जत हो तो चलो अपन रानों गप्पे पहलवान के घर चलें, कछू पिगार पायेंगे तो अपनी जान होम तो कर देंगे।मरिवे के पहले दो-चार को मारि देंय तो मरिवों भीषांति से होयगो ।े पहले अपने हक के लिए लड़ो तो फिर कोाई रास्ता बचे तो जो मन में आये सो करों।
मेरी कौन सुनेगा थाने में ? वहां मेरा कोाइ जान पहचान वाला नातेरिष्तेदार ...’लगभग रो उठे थे वे।
 पुलिस कचहरी में काउ की जरूरत नहीं है, अपन जाके ऊंसेई फरियाद कर सकत हैं और तुम का कोई गली-छंड़ी के रदउवा-रमसींगा हो, कस्बा के  नामवर कविहो, अखबारन में तुम्हारी कविता फविता छपती रहत सो को नहीं जानता होगा, ...और फिर तुम्हारे वे सारे कवि दोस्त वे भी तो मदद करेंगे
पत्नली ने सहसा उबार लिया उन्हे मृत्यू की ओर बढ़ते अवसाद बोध से। वे चेते आरैर तैार हुए , ‘ हां थाने तो जाना ही चाहिये उन्हे
नीचा सिर किये ही थाने तक गये वे। लेकिन जो वे सोचते थे वही हआ, वहां जो दारोगा डयूटी पर था वो उन्ह जानता था उसने उनका नाम तक सुना था जब उन्होने अपने कवि होने की दुहाई दी तो कैसा विदूषको ेकी नाई हंसा था वो, और बोला थाकवि हो ता इधर थारे में क्या काम आपका ?’
मेरी बेटी उठा ले गया वो चिन्टू गुण्डा ...वो गप्पले पहलवान का लड़का वे अपनी आवाज दमदार बनाते अबोले
तो...?तो ढूढ़ो ंउसे क्या उमर थी उसकी ? बालिग होगी तो क्यों परेााषान हाते हो, पनी मरजी से गई होगी मास्साब जाने उसे अपने आप घर लोैट आयेगी और लौेटे तो भी तुम्हारे सिर सेषादीब्याहकी चिन्ता उतर गई बहुत उचक्का और उजडड वो पुलिस दोरोगा।
उन्हे लगा दीवार से सिर दे मारें लेकिन पत्नी की बात याद आई, यों अपना नुकसार क्यों करें, अपने हक के लिये पहनले लड़ें फिर ना हो तो जो मन मे आयें करें

...संयोग से तभी एक सिपाही थाने में घुसा और उन्हे देखतेही बोला, ‘ अरे मास्साब आप यहां ?...कैसे आये ?’
उसने झुक कर पांव छू लिये उनके वे इस घटना से दिलासा से भर गये लगभग रोते हुए बोले उस अन्जान सिपाही से जिसने उनक पांव छुये थे, ‘ हम पहचान नहीं प्ये तुम्हे अब का बतायें कै कैसे आये ...? वो गप्पे पहलवान का लड़का है , वो चिन्अू गुण्डा वो मेरे बेटी को अगवा कर ले गया रिपोर्ट लिखवाने आये हैं
सिपाही ने उनकी बात ध्यान से सुनी ौर बोला तो आओ बेठ के लिख दो कहा कहनो है
धीरज के साथ वे बैठे, वो निर्लज्ज दारोगा पने कान खुजाता मोबाइल पर किसी से बतया रहा था, उनकी ओर से निर्पक्ष बना हुआ
कागज पर अपना कवि हाने ने मासटर होने का पूरा परिचय और साथ मे यह  भी कि तनखा मे से इनकमटैक्स कटातें हैं हर साल सो सरकार से अपनी तकलीफ कह कर मदद करने का हक रखते हैं वे, उन्होने पूरा घटनाक्रम लिखा और उस सिपाही को दे दिया
बस आप घर जाओ, अब पुलिस देख लेगी सारा मामला कहते सिपाही ने आद से नकी दरख्वास्त ली और उन्हे आष्वस्त किया
दारोंगा को रोषभ्रारी निगाहो से घूरते वे उठे और बाहर गये
घर तक उनकी निगाहें नीची रहेीं पत्नी को सारा घटनाक्रम बताया तो वह भी ाष्वस्त हुई, ‘ चलो भगवान ने थाने में भी पना मददगार भेज यिा अब संवर जायेगा सब चल हाथ मुंह धोओ और रोटी खालो ...’

 वे चौंके, कैसी मां है यह, घर से जवान बेटी लापता है और यह खानार पीना की बात कर रही है। लेकिन पत्नी सामान्य थी, उनसे रोज की तरह आग्रह करती हुई