राजनारायण बोहरे और मित्रो की कहानियाँ

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I m a Hindi story writer. Who started writing in eighties.I write literary stories, mostly fiction and short stories. I am not interested in any political or issue based topics and I do not write on such topics. मैं आठवें दशक में अपना लेखन आरंभ करने वाला हिन्दी कहानी लेखक हूं। किन्ही अजीबोगरीब प्रयोगों और आन्दोलनों में मैं दिलचस्पी नहीं रखता और उन्हे आदर्श व उचित नहीं मानता। लोकप्रिय किन्तु साहित्यिक लेखन मेरा उद्देश्य है।

शनिवार, 20 जून 2020

ठसक रामगोपाल भावुक


ठसक
                                                     रामगोपाल भावुक




         अखबार की खबर ने सुदेश शाक्य के दिल और दिमाग को हिला कर रख दिया। चार-पाँच दिन पूर्व की बातचीत में नीलम भैाजी के इस कदम की कोई सम्भावना ही नहीं दीख रही थी।
       ....हुआ येे था कि सुदेेश शाक्य रामदास के घर अपने मुहल्ले के काम की याद दिलाने गया था       
        मुहल्ले में लगातार हो रही चोरियों और सेंधमारी की घटना से बचने का        मुहल्लेवालों को एक ही तरीका सूझा था कि रात को कोई विश्वस्त आदमी मौहल्ले की गलियों में घूमकर पहरा दे तो चोरियाँ बन्द हो सकती हैं।
       ऐसा विश्वस्त आदमी कौन होगा, यह सुदेश शाक्य को तय करना था। मुहल्ले का पार्षद होने के नाते उसके कन्धों पर यह जिम्मेदारी सबने जबरन सौप दी तो सुदेश शाक्य को सोचना पड़ा कि कौन आदमी ठीक रहेगा?
       सहसा उसे याद आया बस्ती में इस काम के लिये रामदास का नाम शान के साथ लिया जाता है। अभी चार दिन पहले वह उसके घर गया था तो रामदास पैसे की तंगी का रोना रो रहा था।
       रामदास यानी कि कस्बे की गलियों में रात के समय पहरा देने वाला चौकीदार लेकिन ईमानदारी में अव्वल। सुदेश शाक्य कस्बे का पार्षद होने के कारण रामदास के जाति से जमादार होने पर भी कोई जाति विरादरी का झमेला नहीं मानता था।
       उसे याद आती है उस दिन की जिस दिन उसने कस्बे के पार्षद का चुनाव लड़ने का फैसला किया था, उसी दिन उसने निश्चय कर लिया था कि वह स्वयम् अनुसूचित जाति से है। अन्य सवर्ण उससे उसी तरह छुआछूत मानते हैं जैसे हम लोग इन जमादारों से ,उसे बोटों की खातिर यह भेदभाव मिटाना ही होगा तभी वह चुनाव में सफल हो पायेगा। फिर हमारे भगवान बुद्ध भी तो इन जातियों के बजूद कोे नहीं मानते। यही सोचकर उसने रामदास के घर जाना-आना शुरू कर दिया था। अब तो उससे घरोवा हो गया है।
       यही सोचते हुये उस दिन तीसरे पहर वह रामदास के घर जा पहुँचा देखा,रामदास चबूतरे पर बैठा है। शायद उसे मजदूरी मिली है। लोग हैं कि उसे इस काम के बदले में कटे-फटे नोट पकड़ा दिये होंगे। सारे नोट सामने फैलाये वह गिनने में व्यस्त था।
        रामदास को आहट मिली तो वह मुस्कराया-‘आओ शाक्य जी आओ, आज बहुत दिनन में दिख रहे हो। चलो हमाये जैसिन की याद तो आई।
        यार याद कैये आती? कल से ही मैं तुमसे मिलने की सोच रहा था। दर असल हमारे मुहल्ले के लोग भी तुम्हें  ही रात की चौकीदारी के लिये काम पर रखना चाहते हैं।फिर वह बात बदलकर बोला-‘लगता है तुम्हें इस महीने की मजदूरी मिल गई, तभी नोट सँभारने में लगे हो।
        रामदास बोला-‘एक छोर से दूसरे छोर तक घूम-घूम कर मुस्तैदी से पहरा दो तब महीने भर बाद जे पइसा दिखातयें। फिर जा महीना तो लोगन ने फटे- पुराने नोट पकराये हैं। मैं जिन्हें थूक लगाकें तीन बार गिन चुको, कभऊं कम हो जातयें और कभहुं बढ़ जातयें।
         यह सुनकर सुदेश शाक्य बोला-‘ लाओ मैं गिन दूँ।
         रामदास ने नोट उसकी ओर बढ़ा दिये। वह नोट लेकर गिनने लगा। सचमुच कुछ नोट ऐसे चिपके थे मानो किसी ने फेवीकोल से चिपका दिये हों। नोट प्रथक करने के लिये उसकी तर्जनी थूक लेने के लिये मुँह के अन्दर चली गई। उंगली के स्पर्श से रामदास के थूक से जीभ लिसलिसी होगई। उसने मुँह के जायके को जाने कैसा बना दिया?उसने उस लिसलिसे पदार्थ को अन्दर गटकना चाहा। उबकाई सी निकली, वह सोचने लगा- मुझे इससे उबकाई आरही है,जबकि मैं तो इन सबका चहेता प्रतिनिधि हूँ। यह सोच उबकाई बन्द होगई।
        तभी रामदास की पत्नी नीलम अपने काम से लौटी। वह समझ गई- आज चौकीदारी के नोट गिने जारहे हैं।
       सहसा उसने अपने ब्लाउज के अन्दर हाथ डाला और पसीने से लथपथ गुमड़े नोटों को निकाल कर सुदेश को देते हुये बोली-‘ शाक्य जी इनकी गिनती सोउ कद्देऊ।
       सुदेश शाक्य ने वे नोट भी ले लिये। वह सोचने लगा-सुसर की इन नोटों को कहाँ छिपाकर लाई है?
       सुदेश शाक्य को सोचते हुये देखकर नीलम बोली-‘मजूरी में फटे-पुराने नोट पकरातयें-जैसे भीख दे रहे हों।
      सुदेश शाक्य उन नोटों की गुड़मुड़ी खेालकर उन्हें तह में जमाने का प्रयास करने लगा। ,पाँَ और दस के नोट थे। उसने उन्हें गिनना शुरू किया। कुल चार सौ पैंतीस रुपये निकले। सुदेश शाक्य ने उन्हें नीलम की ओर बढ़ाते हुये कहा-‘भौजी इन्हें सँभाल कर रखलो। यह खून पसीने की कमाई है।
       उसने सुदेश शाक्य के विचारों में संशोधन किया-‘जिन्हें तुम खून पसीने की कमाई ही कह रहे हो, अरे! जिनमें घरन की बदबू सोऊ है।
        भौजी इनमें घरों की बदबू सम्मिलित करोगी तो ये रुपये इस मजदूरी के बदले बहुत कम पड़ जायेंगे। किस काम की कितनी मजदूरी होना चाहिये, स्वतंत्रता के इतने वर्षों बाद भी आज हम इस बात का निर्णय ही नहीं कर पा रहे हैं।
        तुम्हारी जे बातें हमाई समझ में नहीं आती। मोय तो लोग-बाग ऐसे घूर-घूर के देखतयें जैसे वे गप्प से मुँह में धर लंगे।
        यह सुनकर तो रामदास ने दीवार पर टंगा धार-दार गडसा घूरते हुये पूछा-‘ को सुसरो हमारी नीलम पै बुरी नजर डालतो। बता..ऽऽ को है ऐसो.ऽऽऽ ,ताके प्रान बाके शरीर में से निकरिवे को बैचैन हैं।
         सुदेश शाक्य को अब अहसास हुआ कि मजूरी मिलने की खुशी में रामदास छटाँक दो छटाँक दारू चढ़ा आया है शायद। फिर भी उसने अपनी बात कही-‘वैसे छुआछूत मानंगे, किन्तु कुदृष्टि डालने में संकोच नहीं करेंगे।
          यह सुनकर तो रामदास का क्रोध और भड़क गया। बोला-‘आज मैं बाकी आँखें निकारकें बाके हाथ पै धर दंगो। अच्छे-अच्छे मेरे नाम से कपतयें।
       यार रामदास किस-किस की आँखें निकारोगे।
       बढ़ी हुई बात को सुनकर नीलम बोली-‘जिनकी हम गन्दगी साफ करें और बिनकी गन्दी दृष्टि हूँ सहें। गुस्सा तो जों आतै कै उनको झाडू से मुँह मिटार दऊँ। जों सोचकें रह जातों, पखाने साफ करवे कौ काम बन्द कर दओ तो घर को काम कैसें चलेगो? पहलें, देशी पखानिन के जमाने में बिनको मलबा समेटो, फिर तस्सल में भरो मूड़ पै धरके फेंकिवे जाओ। अब जमानो बदल गओ, लोग-बाग अपने पखाने की सीट खुद ही साफ कर लेतयें। बड़े-बड़े पईसा वारिन के पखाने की सीट साफ करबे मिल पाई है। थोड़ी सी मजूरी मिल पातै। तासे घर के काम में मदत हो जातै। घर-घर चक्कर लगाओ,बुरुश से पखाने साफ नहीं होंय तो उसे हाथ से घिसना लेकें घिस-घिस के साफ करो। नेक कसर रह गई तो घर की मालकिन के उपदेश सुनो। जों लगते कै काम बन्द करदें।
      सुदेश शाक्य ने शंका व्यक्त की-‘भौजी सोचती होगी, जा काम बन्द करदओ तो मेरे इस मित्र के लिये शराब कहाँ से आयेगी?’
      मैं शराब छोड़ दंगो।रामदास तैस में आते हुये बोला।
     तैस में आने से पहले शराब छोड़ो ,फिर इन बातों पर बिचार करो।सुदेश ने समझाया।
       घरन की बदबू से शराब राहत दिलातै।रामदास ने तर्क दिया।
       देखा, तुमसे शराब छोड़ने की बात कही तो तुम शराब को पक्ष लेकें, बाके गुण-गान लगे।सुदेश शाक्य ने उलाहना दिया।
       नीलम ने अपना निर्णय सुनाया-‘ देखो जी, अब तो पखाने साफ करवे से मेरो जी ऊब गओ। हमाई जिन्दगी तो जई में निकर गई।
       सुदेश शक्य ने नीलम का मनोबल बढ़ाया-‘भौजी, लग रहा है आप तो इस काम को अब बन्द करके ही रहोगी।
       वह रामदास की ओर देखते हुये रिरियाकर बोली-‘का करैं, जिनकी मजूरी से घर को काम नहीं चल पात, तासे पखाने साफ करवे को काम रोरें हैं।फिर वह कुछ सोचते हुये बोली-‘शक्य जी काम बन्द कर दओ फिर तो घरें बैठिकें रहनो परेगो।
      सुदेश शाक्य ने परामर्श दिया-‘भौजी, आप भी कोई और दूसरा काम देखें। मैं भी आपके लिये काम ढूढ़ने का प्रयास करुंगा।
      रामदास ने व्यंग्य कसा-...का..ऽऽ.काम देखेगी.ऽऽऽ.. कोऊ जाय शादी-व्याह में पूड़ी बेलवे तो ले नहीं जायगो और घर को झाडू पांेछा करायेगो।
      भौजी, इस समय मुझे एक आइडिया सूझ रहा है, तुम तो अपने मुहल्ले की ऐसीं औरतें इकट््ठी करलो और उनसे पूछ लो कि वे कोई काम करना चाहेंगी या नहीं?’
      शाक्य जी, जा काम छोड़ के कोई और काम क्यों नहीं करना चाहेगी। इसमें उनसे पूछने की क्या बात है।........लेकिन हमें कोऊ का काम देगो।
      सुदेश शाक्य ने दाये हाथ की तर्जनी कनपटी से लगाकर सोचते हुये कहा-‘आजकल पैकिंग का काम बहुत तेजी से फैल रहा है। अब तो हर चीज पुड़ियों में मिलने लगी है। अपने कस्बे के किराना वाले सेठ सुन्दरमल से बात करुंगा। तुम सब एक कमरा लेकर पैकिंग का काम डाल लो। इस काम में लगना भी कुछ नहीं है। वे तौलकर माल भेज दिया करेंगे और तौलकर ले लिया करेंगे। रोज मजदूरी मिल जाया करेगी। बोलो.ऽऽ. यह ठीक रहेगा ना।
       तब हम सब इस नरक से निश्चय ही निकल सकेंगी।
       अब सुदेश शाक्य अपने काम को लेकर मुखातिब हुआ था। चौकीदारी की बातचीत तय हो जाने के बाद रामदास सुदेश को दरवाजे तक छोड़ने आया था। लौटकर रामदास हँसते हुये अपनी पत्नी से कह रहा था-‘ नीलू मोय तो जों लगतै कै जे तेई सुन्दरता पै तो नहीं रीझे।
       राम राम! तुम्हाये मन में ऐसो विचार कैसें आयो?’
      काये आयें जे विचार ,सब तो छुआछूत मानतयें और अपने चूल्हे नों चलो आतो।
       अरे! जे नेता हैं। जिन्हें बोटन के चक्कार में सबसे मिलनो-जुलनों पत्तो।
      तूं ठीक कहते, जाय अपये बोटन को लालच सोऊ है।
       और मोय तो लगतै जे नेतागिरी के साथ-साथ कवि-फवी सोऊ हैं।      
      कवि-फवि होतयें छटे-छटाये। जे सुरा-सुन्दरी के बड़े शौकीन होतयें।
       तुम्हें लगतो तो मैं झें आवे की बिनसे मना कर दूंगी। सच्ची-सच्ची कहियो तुम्हें बाकी नियत में खेाट कहाँ दिखो?’
        मैं तो मजाक कर रओ। अरे! अपयें कस्बा में एकई तो ज। आदमी है जो...
        फिरऊ, मोपै श्ंाका करतओ।
        अरे! हट! तेापै शंका करवो तो खरै नीलम पै शंका करवो हैे।
        उस दिन तो सुदेश शाक्य लौट आया था।
        परसों की इस घटना ने तो रामदास के बारे में और अधिक सोचने को विवश कर दिया था। मुहल्ले भर में यह चर्चा थी कि रामदास ईमानदारी से रातभर पहरा देता है। जिसके दरवाजे पर पहुँचता-ठक ठक ठक, यों तीन बार लाठी ठोक कर आवाज करता, लम्बी सीटी बजाता और चौकन्ना हो आगे बढ़ जाता है। उसने ऐसे ही चौकीदारों की टीम बना रखी है। उसके नाम से दूसरे मोहल्लों की तरह इस मोहल्ले में भी चोरियाँ बन्द हो गई। लोग चैन की नींद सोने लगे।
       चोरों को रामदास की पहरेदारी रास नहीं आई। उन लोगों ने छुपकर पीछे से उसके सिर में लाटी मार दी। लाठी खाकर भी वह पलटकर उन्हें मारने के लिये झपटा था। वे उसकी फुर्ती देखकर भाग निकले। सुना है उसके सिर में गहरी चोट आई है।
       यह सुनकर सुदेश रामदास से मिलने व्यग्र हो उठा। वह दिन चढ़े पैदल ही उसके यहाँ जा पहुँचा। रामदास सिर में पट्टी बाँधे खटिया पर लेटा था। नीलम उसकी सेवा में लगी थी। सुदेश ने उसके पास जाकर पूछा-‘कहो मित्र, कैसे हो?’
      श्रामदास, सुदेश शाक्य से मुस्कराते हुये बोला-‘देख नहीं रहे हो आराम से विस्तर पर लेटा हूँ और नीलम सेवा में लगी है।
      सुदेश शाक्य ने घटना की जानकारी ली-‘सुना है वे आठ थे!
      मित्र, आठ की जगह अठारह होते तो भी वे मेरे सामने टिक पाते।यह कहकर उसने अपनी मूछों पर हाथ फेरा।
       उसकी यह ठसक देखकर सुदेश शाक्य बोला-‘आज सारे कस्बे में तुम्हारी ही चर्चा है।
       नीलम ने झुझलाते हुये कहा-‘ऐसी ठसक किस काम की! जिसमें जान से भी हाथ धोना पड़े।
       रामदास पुनः मूछों पर हाथ फेरते हुये बोला-‘अपने काम पर मर मिट जाने की ठसक ही तो हमारी इस जाति का गौरव है।
       सुदेश शाक्य इन्हीं विचारों में खोया रामदास के यहाँ से लौट रहा था। रास्ते में नगरपालिका के खजांची गच्ची बाबू पान के ठेले पर मुँह में पान ठूस रहे थे। उसे देखकर उसका मुँह कसैला होगया। वह नीलम के बारे में सोचने लगा-नीलम का फुर्तिला शरीर किन्तु पुष्ट देह,उसके अंग-अंग को प्रकृति ने पूरे मनोयोग से सँबारा है।
      ष्शुरू-शुरू में जब यह इस कस्बे में व्याह कर आयी तो अच्छे-अच्छे इसकी सुन्दरता की चर्चा करने लगे थे। इसी सुन्दरता के कारण दैनिक सफाई कर्मचारियों में उसकी मजदूरी लग गई। मजदूरी के पैसे देने के लिये गच्ची बाबू ने उसकी पूरी कलाई पकड़कर उसका अंगूठा लगवाना चाहा था। नीलम ने उसकी इस बात पर उसे बुरी तरह झिड़क दिया था।
      यह बात जब रामदास ने सुनी तो वह शराब पीकर हाथ में चमचमाता चाकू ले गच्ची बाबू के घर जा धमका। दरवाजा खटखटाया-‘अवे . ऽऽ सबको गच्चा देने वाले गच्ची बाबू ऽऽऽ. दरवाजा तो खोल। तेरे घर में तेरी लुगाई नहीं है क्या? साले ऽऽ खड़े-खड़े तेरी ऐसी तैसी कर दूंगा। साले ऽऽ इश्क करने के लिये जमादारिन ही मिली।
      गच्ची बाबू घर में छिप कर बैठ गया। उसकी पत्नी साहस करके देहरी से बाहर आई। उसने  रामदास से डरते-डरते कहा-‘ वे घर पर नहीं हैं।
.              उसने हा-हा विनती करके उसे वहाँ से हटाया। उस दिन से गच्ची बाबू से सभी नाक-भौह सकोड़ने लगे हैं।


      नीलम ने उसी दिन से वह काम छोड़ दिया था। इस समय तक तो वह नगरपालिका में स्थाई कर्मचारी हो गई होती। अब घर-घर पखाने साफ करते फिर रही है।
      ......लेकिन आज अखबार की उस खबर ने सुदेश को चौका दिया, जिसमें रामदास की घरवाली नीलम का जिक्र था।
         वह उठा और रामदास के घर की ओर वाइक मोड़ दी। उस दिन की तरह रामदास उसी चबूतरे पर बैठा था और उसके बगल में बैठी थी नीलम वाइक रोकते हुये सुदेश शाक्य बोला-‘ काये भौजी, क्या हुआ? अखबार में खबर कैसी छपी है तुम्हारे बारे में?’
          नीलम के चहरे पर रोष की लकीरें उभरीं और उसने बताना शुरू किया-‘मैं कल रोज की तरह काम पर निकली,,मौहल्ले के फिलेश के पखाने साफ करते हुये सब घरों से महिलाओं के मासिक धर्म का कचरा इकट्ठा किया, उसे तस्सल में भरा और उसे लेकर मैं सेठ रामलाल के घर जा पहुँची। उनके घर में प्रवेश करने से पहले बाहर नाली के किनारे मैंने उस तस्सल को रखा और उनके मकान की गली में से निकलकर,चौक के कांेने में बने पखाने में जा घुसी।
         मैंने अन्य घरों की तरह उनकी सीट में साबुन का घोल डाला। उसके बाद दस-पन्द्रह मिनट तक मैैल गलने के इन्तजार में ठहरना पड़ा। मैं वहाँ से निकलकर पखाने से सटे चौक के कौने का सहारा लेकर सुस्ताने लगी। मैंने आवाज देकर पूछा-‘ आज सेठानी चाची नहीं दिख रहीं।
        उनका बड़ा लड़का बन्टी अपनी कमीज की कालर ठीक करते हुये अन्दर से चौक में निकल आया। बदरीली मुस्कान मुस्कराते हुये बोला-‘वे घर में नहीं हैं। अरी! नीलम भौजी घर में हम तो हैं। वहाँ क्यों खड़ी हो ,इघर निकल आओ। मम्मी की बात और है, मैं छुआछूत नहीं मानता।
        छुआछूत की बात पर मैं उसकी निगाह को भँापते हुये बोली-‘हम छुआछूत वाला काम रोरें हैं, वैसे जमानों बदल गओ। पहलें की तरह अब कोई उतनी छुआछूत नहीं मानता।
        बन्टी मुझसे आँखें मिलाते हुये बोला-‘अरी! तुम जैसी सुन्दरी को यह काम शोभा नहीं देता।
        सुन्दरता की बात सुनकर मैंने पूछा-‘तो कौन सा काम हमें शोभा देतो?’
        बन्टी इस प्रश्न के उत्तर में झट से बोला-‘तुम चाहो तो ऐश की जिन्दगी जी सकती हो।
        उसके मुँह से यह बात सुनकर उसको बढ़ावा देने के लिहाज से मैं संडास साफ करने के लिये मुड़ी। यह देखकर बन्टी बोला-‘भौजी, हम तो तुम्हारी सुन्दरता पर फिदा हैं। तुम्हारी बड़ी बड़ी कजरारी आँखें, हिरनी सी चितवन, सुरारी नासिका, चाँदनी सा शुभ्रवदन और तुम्हारी मयूरी के सदृश्य चाल देखते ही रह जाता हूँ।
        यह कहते हुये उसने आगे बढ़कर दस दस के मूठा भरे नोट, हाथ डालकर मेरे ब्लाउज में खुरस दिये तो मैंने फडक कर उसका हाथ झटक दिया...और बोली-‘खबरदार जो और आगे बढ़ा।
        मेरी कडक आवाज सुनकर बन्टी सहम गया था। वे नोट नीचे जमीन पर आकर बिखर गये। मैं पखाना साफ किये बिना बाहर निकली। नाली के पास रखे उस मलबे के तस्सल को सिर पर रखा और क्रोध में सोचते हुये चल पड़ी-कितैक कानून बनतयें। बड़ी-बड़ी बातें होतें। कहतयें कर्तव्य पालन से सुरग मिल जातो। कहूँ सुरग मिल गओ तो भैं हूं हमाई जेई गतें होयगीं।
       यह साुचकर मैं जोर-जोर से बड़बड़ाई-‘नहीं .चहिये ऽऽ.मोय सुरग ऽऽऽ.   
       मुझे भारी गुस्सा रहा था लेकिन समझ नहीं आरहा था कि बन्टी जैसों को कैसे सबक सिखाऊँ? सहसा मुझे एक तरीका सूझा और मैने उस मलबे के तस्सल को मुहल्ले के बीच चौराहे पर आकर पटक दिया।
       यह देखकर नाक पर हाथ रखते हुये लोग झिमिट आये। एक बोला-‘इन गन्दे लोगों को गन्दगी फैलाने मैं ही मजा आता है।
       दूसरे ने अपना बयान जारी किया-‘वेदों और शास्त्रों में जिनके लिये जो काम बताओ है वह काम उन्हें ईमानदारी से कन्नों चहिये।
       यह सुनकर मैं झुंझलाते हुये बोली-‘तुम खुद सोऊ सुधरो, अपनों काम खुद करो, तब तुम्हें पतो चलेगो कि यह काम कैसो लगतो? मैं तो चली।
       यह देखकर तीसरे ने कहा-‘हम थाने में रिपोर्ट कर देंगे। नगर पालिका में तुम्हारी शिकायत करेंगे।
       उनकी यह बात सुनकर मैं गुस्से में बोली-‘तुम्हें जो कन्नो होय सो कर लियो। मैं तो चली।      
          इतना कहकर मैं रिपोर्ट करने थाने चली गई। भें टी. आई. पहलें तो मेरी ओर घूरत रहो, फिर रिपोर्ट करिवे के लाभ बतान लगो।। मैंने कहा-‘मेरी रिपोर्ट नहीं लिखोगे तो मैं एम. एल. . के पास चली जाऊँगी।
        यह सुनकें गालियाँ बकन लगो फिर जाने का सोच कें बाने रिपोर्ट लिख लई। भें ही एक पत्रकार सोऊ खड़ो,शायद बाने मेरी पूरी घटना अखबार में छाप दई होगी
        रामदास बोला-‘का लिखी है अखबार में, कछू बुराई लिखी है का नीलम की?’
        सुदेश शाक्य ने अखबार खोलकर दिखाते हुये कहा-‘सिर्फ इतना हवाला है कि छेड़छाड़ से तंग आकर नीलम नाम की एक सफाई करने वाली ने मुहल्ला भर की गन्दगी बीच चौराहे पर जाकर पटक दी और रिपोर्ट करने ठसक से थाने पहुँच गई।
        यह सुनकर नीलम ने अपनी अगली योजना बताई-‘अब तो हम सब औरतें पैकिंग करते बखत मिल बैठिकें अपनी सारी उलझनें सुलझा लिया करेंगीं।
        नीलम के चेहरे पर आत्मविश्वास पढ़ते हुये रामदास बोला-‘मैं तो सोचतों कै औरत जात एक लता की तरह है, उसे बढ़ने के लिये सहारे की जरूरत पड़ती है।....... किन्तु नीलू तू तो खुद ही एक दरख्त बनकर उभरी है।
       सुदेश शाक्य ने देखा कि सचमुच दोनों के चेहरे पर एक अजब ठसक थी।

               सम्पर्क- कमलेश्वर कालोनी(डबरा) भवभूति नगर जिला ग्वालियर . प्र. 475110 दूरभष-09425715707     
या़त्रा वृतांत

                 

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